कौशांबी: उत्तर प्रदेश जनपद कौशांबी के रहने वाले एक पहलवान को पूरे भारत देश में बहुत की प्रसिद्धि मिली है. रामकिशन पहलवान के परिवार के रग-रग में कुश्ती लड़ने के लिए खून दौड़ता है. साल 1997 में जब उनकी उम्र 18 वर्ष थी, तभी से कुश्ती लड़ने का काम शुरू किया. अब पहलवान रामकिशन केवल चैंपियन की कुश्ती लड़ते हैं.
पहलवान राम किशन तिवारी ने Local 18 से बात करते हुए बताया कि पहलवानी का खून तो मेरे परिवार के रग-रग में बसा हुआ है. पहलवान राम किशन तिवारी जब साल 1997 में 18 वर्ष हुए थे, तभी से कुश्ती लड़ना शुरू कर दिया था. तभी से कुश्ती लड़ते-लड़ते आज वर्ल्ड चैंपियन की कुश्ती तक जीत हासिल की है.
18 बार जीता चैंपियन खिताब
उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले में अधिकतर चैंपियन के विजेता सिर्फ रामकिशन ही कहलाते हैं. पहलवान राम किशन तिवारी ने कौशांबी में 18 बार चैंपियन खिताब है. 10 बार इलाहाबाद मंडल की चैंपियन की खिताब और 8 बार उत्तर प्रदेश के मट्टी खेल की खिताब जीता है. दो बार नेशनल चैंपियन का भी खिताब है. इसके साथ-साथ छह बार भारत केसरी के दंगल में प्रतिनिधित्व कभी कर चुके हैं.
एक बार हाल ही में वर्ड नुमाड़ गेम कजाकिस्तान में हुआ था, वहां पर पाकिस्तान के पहलवान को हराकर ब्रॉन मेडल हासिल किया है. वह मेडल जीवन की सबसे बड़ी विश्व चैंपियन उपलब्धि है. इस कुश्ती के लिए सर्वश्रेष्ठ इसलिए कहता हूं कि मेरे सामने पाकिस्तान था और वर्ल्ड चैंपियन का मैच था, इसलिए वह मेरे जीवन का सबसे बेहतरीन कुश्ती थी.
दस्तावेजों में अर्जुन तिवारी नाम दर्ज
पहलवान राम किशन तिवारी जो कि इनका नाम पहले अर्जुन तिवारी के नाम से जाना जाता था, आखिर जब से इन्होंने पहलवानी करना शुरू किया, तभी से इनका नाम बदलकर राम किशन तिवारी हो गया. यह नाम बदलने का भी एक राज था. पहलवान राम किशन तिवारी ने बताया कि कक्षा 1 से लेकर इंटर की पढ़ाई तक सभी दस्तावेजों में अर्जुन तिवारी ही नाम दर्ज था.
इस नाम के पीछे पहलवान की जीत न हासिल होने के कारण नाम बदलने के बारे में सोचा. फिर उन्होंने अर्जुन तिवारी से नाम बदलकर राम किशन तिवारी रख लिया. जब से मैंने अपना नाम बदला, उसी दिन से कुश्ती भी जितना शुरू कर दिया. रामकिशन ने बताया कि कई सालों पहले जब मैं कुश्ती की शुरूआत किया था, तब मेरे ही गांव में दंगल हो रहा था. उस दौरान गांव के ही रिजवान नाम के व्यक्ति से कुश्ती हुई और उस कुश्ती को जीतकर 35 रुपए मिले. वही 35 रुपए ने मुझे पहलवान बना दिया.
हिंदू-मुस्लिम व जातिवाद का मतलब कुछ भी नहीं
पहलवान रामकिशन तिवारी अब सिर्फ चुनिंदा कुश्ती ही लड़ते हैं, जो प्रदेश लेवल हो या इंटरनेशनल लेवल हो. वहीं पहलवान रामकृष्ण तिवारी ने Local 18 से बात करते हुए कहा कि हमारे अखाड़े में हिंदू-मुस्लिम व जातिवाद का मतलब कुछ भी नहीं है. इस अखाड़े पर दोनों समुदाय के लोग कुश्ती सीखने आते हैं. सबसे अधिक मुस्लिम समुदाय के बालक लोग कुश्ती सीखने के लिए आते हैं.
उन्होंने कहा कि सबसे पहले पहलवान आखिर अखाड़े के पास स्थित मंदिर हनुमान जी की मंदिर पर चढ़कर चारों तरफ झाड़ू से साफ-सफाई करते हैं. इसके बाद अपने अखाड़े की ओर जाते हैं. इससे यह प्रतीत होता है कि हिंदू और मुस्लिम दोनों एक मिलकर कार्य करते हैं. इस तरह पहलवान रामकिशन के शिष्य लगभग 60-70 लोग अखाड़े पर आते हैं और प्रतिदिन 4 से 5 घंटा कुश्ती सीखने का अभ्यास भी करते हैं.
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