अमेरिका में पढ़ाई आसान? लेकिन नौकरी मुश्किल, जानें ट्रंप कैसे बढ़ा रहे परेशानी?

अमेरिका में पढ़ाई आसान? लेकिन नौकरी मुश्किल, जानें ट्रंप कैसे बढ़ा रहे परेशानी?



अमेरिका में पढ़ाई करने और वहां नौकरी पाने का सपना देखने वाले भारतीय छात्रों और प्रोफेशनल्स के लिए बड़ी खबर आई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले ने अब भारतीयों के इस सपने को पहले से कहीं ज्यादा महंगा बना दिया है. दरअसल ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा की फीस को बढ़ाकर एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) कर दिया है. यह नया नियम 21 अक्टूबर 2025 से लागू हो चुका है. हालांकि जो छात्र F-1 वीजा पर हैं, उन्हें राहत दी गई है. आइए जानते हैं किन्हें राहत मिलेगी और किन्हें ज्यादा पैसे चुकाने होंगे.

H-1B वही वीजा है जिसके सहारे भारत के हजारों छात्र पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में काम करने का मौका पाते हैं. इस फैसले से अब अमेरिकी वर्क वीजा का सपना सिर्फ कठिन नहीं, बल्कि बेहद महंगा भी हो गया है. यूएस सिटीजनशिप एंड इमीग्रेशन सर्विसेज (USCIS) की वेबसाइट पर जारी नोटिस के मुताबिक यह फीस उन नई H-1B वीजा याचिकाओं पर लागू होगी जो 21 सितंबर 2025 की रात 12:01 बजे (भारतीय समयानुसार सुबह 9:31 बजे) या उसके बाद दायर की जाएंगी. यानी अब कोई भी नई आवेदन करने वाली कंपनी को अपने विदेशी कर्मचारियों के लिए यह भारी रकम देनी होगी.

हालांकि, USCIS ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह फीस उन लोगों पर लागू नहीं होगी जो पहले से अमेरिका में हैं और अपने वीजा स्टेटस को बदलना या बढ़ाना चाहते हैं. कोई छात्र जो F-1 स्टूडेंट वीजा पर पढ़ रहा है और पढ़ाई पूरी करने के बाद H-1B वर्क वीजा में जाना चाहता है, उसे यह फीस नहीं देनी होगी.

इतने गुना बढ़ी कीमत

इससे भारतीय छात्रों को थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन जो छात्र आने वाले समय में अमेरिका में नौकरी करने का सपना देख रहे हैं, उनके लिए यह फैसला मुश्किलें बढ़ा सकता है. अब सवाल यह है कि यह 88 लाख रुपये कौन देगा? यह रकम कर्मचारियों से नहीं, बल्कि अमेरिकी कंपनियों से वसूली जाएगी. जो भी कंपनी किसी विदेशी कर्मचारी को H-1B वीजा दिलाना चाहती है, उसे हर आवेदन के साथ यह फीस भरनी होगी. पहले यह फीस 1700 से 4500 डॉलर के बीच थी, यानी अब यह करीब 20 गुना बढ़ गई है.

हर साल इतने वीजा होते हैं जारी

हर साल अमेरिका में करीब 85 हजार H-1B वीजा जारी किए जाते हैं, जिनमें से लगभग 70 प्रतिशत भारतीयों को मिलते हैं. इस बढ़ी हुई फीस का सीधा असर भारतीय प्रोफेशनल्स पर पड़ेगा. खासकर नए या मिड-लेवल कर्मचारियों के लिए यह बुरी खबर है, क्योंकि कंपनियां अब इतनी बड़ी रकम खर्च करने से पहले कई बार सोचेंगी.

भारत से जाते हैं ये लोग

अमेरिकी कंपनियां आमतौर पर H-1B वीजा के जरिए भारत जैसे देशों से तकनीकी, आईटी और इंजीनियरिंग विशेषज्ञों को काम पर रखती हैं. लेकिन अब वे केवल उन्हीं उम्मीदवारों को मौका देंगी जिनकी स्किल्स बहुत खास हों. यानी अब वहां नौकरी पाने का रास्ता पहले से ज्यादा कठिन हो गया है.

भारतीयों पर भी असर

इस फैसले का असर भारतीय छात्रों पर भी पड़ेगा. जो छात्र अमेरिकी यूनिवर्सिटीज में पढ़ाई पूरी करने के बाद “ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग” (OPT) के जरिए काम शुरू करते हैं और बाद में H-1B वीजा के लिए आवेदन करते हैं, उन्हें अब कंपनियों से स्पॉन्सरशिप मिलने में परेशानी हो सकती है.

क्या है ट्रंप का तर्क?

ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि यह फैसला अमेरिकी नागरिकों के रोजगार की रक्षा के लिए लिया गया है. उनका मानना है कि विदेशी कामगारों की बढ़ती संख्या स्थानीय अमेरिकी कामगारों के अवसर कम कर रही थी. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था और टेक्नोलॉजी सेक्टर में भारतीयों का योगदान बेहद अहम रहा है.

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